जब छोटे थे हम मन में एक सवाल आता था आसमान को देख कर, यदि मेरे पंख होते तो क्या होता? अगर होते तो वो बड़े अनोखे होते। वो कभी न थमते, न कभी मुझे किसी के हाथ आते। बस उड़ा ले जाते मुझे जहाँ मेरा मन होता। जब स्कूल जाना होता, तो किसी से बिन बताये ले जाते मुझे ये उस पार्क में जहाँ सबसे ज्यादा झूलें होते और झूलने के लिए अपनी बारी का इंतज़ार भी न करना पड़ता क्योंकि तब सब बच्चे स्कूल में पढ़ रहे होते।
ये पंख मिल जाते तो हवाई जहाज़ का सफर मुफ्त में होता। मैगज़ीन में जिस देश की फोटो थी, वो देश देख लिया होता। हवा मेरा ठिकाना होती, बस पैर कभी ज़मीन पे न टिकते। माँ को रोज़ कहीं न कहीं घुमा आते मैं और मेरे ये पंख। अपने बेस्ट फ्रेंड को उसके जन्म दिन पर एक दिन के लिए तोहफ़े में इन पंखों की उड़ान दे दी होती। ठंडी हवाओं में बस मैं और मेरी उड़ान होती। रोड क्रॉस करने में डर नहीं लगता क्योकि क्रॉस ही नहीं करनी पड़ती। बस हवा में हर जगह पहुँच होती मेरी। रुई जैसे बादल को अपने हाथों से छुने को मिलता। किसी बादल को आइस-क्रीम तो किसी को साइकिल बना लेते हाथों से।
मन करता की जल्दी-जल्दी हर जगह घूमना हो जाता। मेरी उड़ानों के दौरान हर सुन्दर नज़ारा मेरी आँखों के सामने से गुज़रता। पकड़म-पकड़ाई में कोई मुझे नहीं पकड़ पाता। छुपन-छुपाई खेलते हुए पेड़ों पर बड़े आराम से छिपना हो जाता। बारिश होती तो ऊपर उड़ान भरने पर समझ आ जाता कि आखिर ये बारिश होती कैसे है। किताबों से जानना नहीं पड़ता। सब सामने आसमानों में ही देखने को मिल जाता।
आज ऐसे लगता है, है तो पंख मेरे पास। मेरा ज्ञान, मेरी सोच। मैं सिर्फ शरीर तो नहीं, आत्मा हूँ। मेरे पंख मेरा ज्ञान और मेरी सोच ही तो हैं जो नजाने कहाँ-कहाँ ले जाते हैं मुझे। कितना कुछ मुझे दिखाते हैं। ज्ञान है तो, समझ होती है, हमारे कदम बस बढ़ते ही रहते हैं। पँखों की शक्ल में लगे हैं हर वक़्त, जो कोई काट नहीं सकता, अलग नहीं कर सकता। न तो ये तोड़े जा सकतें हैं, ना ही मरोड़े जा सकतें हैं क्योंकि कभी किसी के हाथ ही नहीं आ सकते। हर देश विदेश ले जा सकते हैं। सोच ही तो है, जितनी बड़ी उतना ऊँचा ले जाती है। मेरे पंख मेरे पास ही हैं । दिखते तो नहीं पर मेरे साथ ही हैं । बस ये और बड़े हो जाएँ और मुझे हर जगह ले जाए ।
………यदि मेरे पंख होते निबन्ध हिंदी में…………
nice😊
Acha imagination
यदि मेरे पंख होते
पंख का संबंध आत्मविश्वास (हौसलों) से है। वास्तव में मन के पंखों की कल्पनिक उड़ान से ही हम वांछित मुकाम हासिल करते हैं। यही वह पंख है जो असंभव को संभव बनाने का संबल प्रदान करता है। यह तो यथार्थ का एक पहलू हुआ। यदि हम निबंध या वाक्य रचना की बात करें तो सहसा हमारा ध्यान पक्षियों की ओर केन्द्रित होता है। पौ-फटने से पूर्व जागरण, उनके मधुर कलरव से वातावरण में उत्पन्न ऊर्जारूपी स्वर लहरियां हमें आशा की नित नई सुबह का आभास कराते हैं। व्यस्ततम दिनचर्या से उत्पन्न तनाव को खत्म कर नयी उमंग का संचार करते हैं। कोयल की कूक से पकते आम, बादलों को बरसने को विवश करता मयूर नृत्य, सारस बगुले की एकाग्रता, हंस का नीर-क्षीर विवेक, बया की वास्तुशिल्पी, बीजो का स्थानांतरण ताकि वह वृक्ष बन सकें जैसे अनेक पक्षियों के अथक परिश्रम हमें भी उसी तरह प्रेरित करते हैं। मानव जीवन में सीमा, बंधन, जात-पांत जैसी विकृतियों से परे समस्त जीवों के स्वतंत्र उड़ान को पुष्ट करती हैं। किन्तु अब ये पक्षी आधुनिक मानव के इस संसार से ऊब चुके हैं । उन्हें वृक्ष की शाखाओं की जगह विद्युत तार, कांक्रीट के जंगलो में बसेरा बनाने को विवश होना पड़ रहा है। आधुनिकता की दौड़ से उत्पन्न स्मार्टसिटी की अवधारणा मे लुप्त वृक्ष, नदी, तालाब, पोखर, कुएं, बावड़ी जैसे जलाशयों के अभाव में प्यासे रहने को विवश ये पक्षी दूरसंचार टेलीफोन, मोबाइल के बड़े-बड़े टावरों से उत्पन्न तरंगों से भ्रमित हो अपना मूलस्वरूप खो रहे हैं। ऐसे में हम लुप्त होते पंख हमें जहां ले जा रही है शायद वह मंजिल कभी प्राप्त हो सकेगी। ऐसे मे घरौंदा फिल्म में गुलजार की वह पंक्तियां याद आ रही हैं जिसमें उन्होंने लिखा था – इन उम्र सी लंबी सड़कों को, मंजिल पे पहुंचते देखा नहीं। बस दौड़ती फिरती रहती हैं हमने तो ठहरते देखा नहीं। एक अकेला इस शहर में …………. राकेश कुमार वर्मा 9926510851